मुक्तक
उठा अपनी कलम फिर जंग का आग़ाज़ कर
मुश्किलो को तोड़कर अम्बर में तू परवाज कर,
बिछ गया है देख भष्टाचार का आतंक यहाँ,
अब सियासी सूरमाओं के ये सर बेताज कर।।
उठा अपनी कलम फिर जंग का आग़ाज़ कर
मुश्किलो को तोड़कर अम्बर में तू परवाज कर,
बिछ गया है देख भष्टाचार का आतंक यहाँ,
अब सियासी सूरमाओं के ये सर बेताज कर।।