मुक्तक
दीपावली मुक्तक
नेह की बाती जले सद्भभाव की हो धारणा।
जगमगाते दीप में उत्सर्ग की हो भावना।
दीप माटी के जला रौशन करें हर द्वार को-
द्वेष अंतस का जले सत्काम की हो कामना।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
बहुत दिन भूख से तड़पी नहीं था कुछ खिलाने को।
बना उम्मीद के दीपक चली बेटी कमाने को।
बिके दो-चार दीपक भी क्षुधा उर की मिटाएँगे-
सँजोए स्वप्न आँखों में नहीं था कुछ गँवाने को।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र)
संपादिका-साहित्य धरोहर