मुक्तक
भरी गागर बुराई की छलकना भी ज़रूरी है।
नज़र से दूर होने पर तड़पना भी ज़रूरी है।
गरजते जो ज़माने में बरसते वो नहीं भू पर-
खरी-खोटी सुनाए तो मसलना भी ज़रूरी है।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर