मुक्तक
(1)
‘सदा’ भी सदा कहाँ सुनते हैं लोग,
माना फानी दुनिया में खुदगर्ज लोग,
पर दे न सुनाई जो कभी सदा-ए-लब,
सदा-ए-चश्म दिल से भी सुनते चंद लोग
(2)
हमें भी खुदा ने बख्शी है नेमते
यकीन होता है पक्का हमको तभी
उनकी ही नजरों से देखें जब खुद को
या उनको ही जी भर के देखें कभी
✍हेमा तिवारी भट्ट✍