मुक्तक
काँटों सी हुईं साजिशें गुब्बारे सा नेह,
विकलांगों सी दिख रही है रिश्तों वाली देह,
मानवता के द्वारे -द्वारे बिखर गया है कीचड़ दल दल,
सूख गयी आशा की नदिया बहती थी जो कल कल कल कल
काँटों सी हुईं साजिशें गुब्बारे सा नेह,
विकलांगों सी दिख रही है रिश्तों वाली देह,
मानवता के द्वारे -द्वारे बिखर गया है कीचड़ दल दल,
सूख गयी आशा की नदिया बहती थी जो कल कल कल कल