मुक्तक
हर तरफ लगी होड़ ,ये दौड़ कैसी है
मानवी आधार भी ताख पर रखी जैसी है
जीवन के सुखद पहलू भी नजर अंदाज कर
हर इंसान शेर की सवारी कर रहा जैसी है ।
प्रमिला श्री
हर तरफ लगी होड़ ,ये दौड़ कैसी है
मानवी आधार भी ताख पर रखी जैसी है
जीवन के सुखद पहलू भी नजर अंदाज कर
हर इंसान शेर की सवारी कर रहा जैसी है ।
प्रमिला श्री