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19 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

” कभी सोचा न था इक दिन मेरा भी हश्र ये होगा,
मगर अब सोचती हूँ कैसे हाथ आयेगी ज़िन्दगी,
बहुत वीरानगी है अब यहाँ पर दिल नहीं लगता,
न जाने कब फिर से अब गुनगुनायेगी ज़िन्दगी “

Language: Hindi
188 Views
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