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18 Aug 2018 · 1 min read

मुक्तक

(1) मंज़िल पे ध्यान हमने ज़रा भी अगर दिया,
आकाश ने डगर को उजालों से भर दिया,
रुकने की भूल हार का कारण न बन सकी,
चलने की धुन ने राह को आसान कर दिया।

(2) घर, खेत, गाय, बैल, रक़म अब कहाँ रहे,
जो कुछ था सब निकाल के फसलों में भर दिया।
मंडी ने लूट लीं जवाँ फसलें किसान की,
क़र्ज़े ने ख़ुदकुशी की तरफ़ ध्यान कर दिया।

Language: Hindi
179 Views
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