Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jul 2018 · 1 min read

मुक्तक

1)
सुखद परिवर्तन हो जिस रोज
चाँदनी फैलेगी उस रोज
प्रेम ,करुणा , ममता विस्तार
नवल जग रूप सजे उस रोज ||

(2)
ग्यान की लौ का बड़ा महत्व
मुखर हो गहराता देवत्व
ओम का गूंजे अनहद नाद
प्रकट तब हो जाता बुद्धत्व ||

(3)
व्यक्ति में आता एक बदलाव
चरित में होता एक ठहराव
मनुज होता जब प्रबल प्रबुद्ध
प्रकाशित होता हर एक ठाव ||
©®मंजूषा श्रीवास्तव

Language: Hindi
431 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत को जान लेता
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
मूँछ पर दोहे (मूँछ-मुच्छड़ पुराण दोहावली )
Subhash Singhai
कुछ भी
कुछ भी
*प्रणय प्रभात*
अध्यापक:द कुम्भकार
अध्यापक:द कुम्भकार
Satish Srijan
चप्पलें
चप्पलें
Kanchan Khanna
वो केवल श्रृष्टि की कर्ता नहीं है।
वो केवल श्रृष्टि की कर्ता नहीं है।
सत्य कुमार प्रेमी
खालीपन
खालीपन
करन ''केसरा''
ऐसा क्या लिख दू मैं.....
ऐसा क्या लिख दू मैं.....
Taj Mohammad
जीवन एक संगीत है | इसे जीने की धुन जितनी मधुर होगी , जिन्दगी
जीवन एक संगीत है | इसे जीने की धुन जितनी मधुर होगी , जिन्दगी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
करवाचौथ (कुंडलिया)
करवाचौथ (कुंडलिया)
गुमनाम 'बाबा'
आदमी का वजन
आदमी का वजन
पूर्वार्थ
महाभारत एक अलग पहलू
महाभारत एक अलग पहलू
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
एक ख़्वाब सी रही
एक ख़्वाब सी रही
Dr fauzia Naseem shad
क्या कभी तुमने कहा
क्या कभी तुमने कहा
gurudeenverma198
"आदि नाम"
Dr. Kishan tandon kranti
चले हैं छोटे बच्चे
चले हैं छोटे बच्चे
कवि दीपक बवेजा
रहिमन ओछे नरम से, बैर भलो न प्रीत।
रहिमन ओछे नरम से, बैर भलो न प्रीत।
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
"सुन रहा है न तू"
Pushpraj Anant
*समझो मिट्टी यह जगत, यह संसार असार 【कुंडलिया】*
*समझो मिट्टी यह जगत, यह संसार असार 【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
" पीती गरल रही है "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
4014.💐 *पूर्णिका* 💐
4014.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
खूबसूरती
खूबसूरती
Ritu Asooja
कहीं पे पहुँचने के लिए,
कहीं पे पहुँचने के लिए,
शेखर सिंह
यह कैसी आस्था ,यह कैसी भक्ति ?
यह कैसी आस्था ,यह कैसी भक्ति ?
ओनिका सेतिया 'अनु '
सच्चाई सब जानते, बोलें फिर भी झूठ।
सच्चाई सब जानते, बोलें फिर भी झूठ।
डॉ.सीमा अग्रवाल
इक उम्र चुरा लेते हैं हम ज़िंदगी जीते हुए,
इक उम्र चुरा लेते हैं हम ज़िंदगी जीते हुए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
सम्मान पाने के लिए सम्मान देना पड़ता है,
सम्मान पाने के लिए सम्मान देना पड़ता है,
Ajit Kumar "Karn"
🌳वृक्ष की संवेदना🌳
🌳वृक्ष की संवेदना🌳
Dr. Vaishali Verma
साधना की मन सुहानी भोर से
साधना की मन सुहानी भोर से
OM PRAKASH MEENA
Loading...