मुक्तक
दृढ़ निश्चय कर लो फिर कोई कदम रोक न पाता है,
चट्टानें ढह जाती हैं पर्वत भी शीश झुकाता है!
शिलालेख वे ही लिख पाते हैं जिनमें कुछ साहस हो,
स्याह रात चाहे कितनी हो चाँद चमकता जाता है!!
@विपिन शर्मा
दृढ़ निश्चय कर लो फिर कोई कदम रोक न पाता है,
चट्टानें ढह जाती हैं पर्वत भी शीश झुकाता है!
शिलालेख वे ही लिख पाते हैं जिनमें कुछ साहस हो,
स्याह रात चाहे कितनी हो चाँद चमकता जाता है!!
@विपिन शर्मा