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13 Dec 2017 · 1 min read

~* मुक्तक *~

विरह वेदना सही ना जाये, आ जाओ मन मीत l
हम तुम दोनो मिल कर गायें, प्रेम प्रीती के गीत l
तुम बिन सूनी मन की नगरी, सूनी है सुबह शाम –
तपता विरह अगन में प्रेम, है कैसी जग की रीत l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
किरण पाँचाल

Language: Hindi
1 Like · 616 Views
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