~* मुक्तक *~
विरह वेदना सही ना जाये, आ जाओ मन मीत l
हम तुम दोनो मिल कर गायें, प्रेम प्रीती के गीत l
तुम बिन सूनी मन की नगरी, सूनी है सुबह शाम –
तपता विरह अगन में प्रेम, है कैसी जग की रीत l
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किरण पाँचाल
विरह वेदना सही ना जाये, आ जाओ मन मीत l
हम तुम दोनो मिल कर गायें, प्रेम प्रीती के गीत l
तुम बिन सूनी मन की नगरी, सूनी है सुबह शाम –
तपता विरह अगन में प्रेम, है कैसी जग की रीत l
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किरण पाँचाल