मुक्तक
[ 1 ]
किस सोंच प्रिये तुम बैठी हो ,क्यों अधर कुसुम कुम्हलाए हैं |
यूँ झुकी हुयी पलकें तेरी , अंतर मन को बहलाए हैं |
यूँ बैठी खाली पात्र लिये , चिन्तन रत हो खोयी खोयी |
नल की जल धारप्रबल गिर कर, कल कल कर तुम्हे बुलाए है |
[ 2 ]
कुछ बात करो कुछ तो बोलो ,यूँ गुम – सुम हो मत बैठ प्रिये |
हमदम हमराज बनाया जब, कर दिल से दिल की बात प्रिये |
इक बार नज़र भर कर देखो ,बल सम्बल सब मिल जाएगा –
मैं हूँ तेरा फिर ग़म कैसा , कह डालो अब जज्बात प्रिये ||
©®मंजूषा श्रीवास्तव