मुक्तक
मुक्तक
१.घूंघट ओढ़े लाज का, करती है सब काम।
सबके सुख-दुख में लगी , कहॉं उसे आराम।।
अपने सपनों को मिटा,साधे घर संसार –
नारी तू नारायणी, इस जग का अभिराम।।
२,शर्म आज सब त्याग कर , भूले सब संस्कार ।
रंग रूप बदला हुआ , बदला अब संसार।।
भाव-हीन मानुष बना, प्रेम हृदय से रिक्त _
दॉंवपेंच के खेल में, छूटे घर परिवार।।
योगमाया शर्मा
कोटा राजस्थान