मुक्तक
हर दिन हर लम्हा नई मुस्कान चाहिए।
ऊँचाइयाँ छू लूँ ,वो आयाम चाहिए।
अँधेरों में खोना ‘मे’री फितरत नहीं है,
मुझे अपने वजूद की पहचान चाहिए।
डॉ .रागिनी शर्मा,इन्दौर
हर दिन हर लम्हा नई मुस्कान चाहिए।
ऊँचाइयाँ छू लूँ ,वो आयाम चाहिए।
अँधेरों में खोना ‘मे’री फितरत नहीं है,
मुझे अपने वजूद की पहचान चाहिए।
डॉ .रागिनी शर्मा,इन्दौर