मुक्तक
मुक्तक
छाया है कुहरा घना,बहुत अधिक है शीत।
मार्ग नहीं दिखता कहीं,सब राही भयभीत।
विकट परिस्थिति है बनी,फँसी मुसीबत जान,
मौसम के आगे नहीं, संभव लगती जीत।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
मुक्तक
छाया है कुहरा घना,बहुत अधिक है शीत।
मार्ग नहीं दिखता कहीं,सब राही भयभीत।
विकट परिस्थिति है बनी,फँसी मुसीबत जान,
मौसम के आगे नहीं, संभव लगती जीत।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय