मुक्तक
सहर होने से पहले चिराग़ बुझा देता हूँ ।
..अक्स तेरा अपनी पलकों में छुपा लेता हूँ ।
…..हर कतरे से तेरी याद और भी बढ़ जाती है –
……..बेबसी के आलम में .दो अश्क बहा लेता हूँ ।
सुशील सरना
सहर होने से पहले चिराग़ बुझा देता हूँ ।
..अक्स तेरा अपनी पलकों में छुपा लेता हूँ ।
…..हर कतरे से तेरी याद और भी बढ़ जाती है –
……..बेबसी के आलम में .दो अश्क बहा लेता हूँ ।
सुशील सरना