मुक्तक
मात्राभार(14)
************ 1- मधुपों का उपवन गुंँजार।
कलिओं से अनवरत प्यार।
नश्वरता जीवन का सच-
सत्य-प्रेम अवनि पर सार।
मात्राभार(16)
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2- अधरों पर मुस्कान चाहिए।
जगतीतल सम्मान चाहिए।
सत्य न्यायसंगत चिर शाश्वत-
धरती को इन्सान चाहिए।
3- मात्राभार(20)
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मनस के कलुष को मिटाया करेंगे।
करुण भाव सब पर लुटाया करेंगे।
हृदय के किसी कोंण में यदि व्यथा भी-
विधाता को मात्र बताया करेंगे।
4- मात्राभार (26)
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भक्ति ईश्वर की करें कैसे हमें आता नहीं।
साधना हित लौ लगायें ये हमें भाता नहीं।
मात्र जीवन में सदा माया पिपासु हम रहे-
जिंदगी अवसान पर ये मोह भी जाता नहीं।
5- मात्राभार (14)
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फिर सुख के पल आयेंगे।
मन प्रतिपल हर्षायेंगे।
कभी न कभी धरातल से-
मन- विकार, छल जायेंगे।
6- मात्राभार (22)
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कठिन कर्म है महाकाल से टकराना।
सत्य निरर्थक मानव को भी बतलाना।
अतिरिक्त स्वार्थ के रुचि नही मानस में-
बात लोकहित कठिन सभी को समझाना।
–मौलिक एवं स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ(उ०प्र०)