मुक्तक
एक मुक्तक
नही इंसान से डर लग रहा है।
आज की पहचान से डर लग रहा है ।
प्रीति की भाषा अपावन हो चुकी है ।
आज की मुस्कान से डर लग रहा है।।
एक मुक्तक
नही इंसान से डर लग रहा है।
आज की पहचान से डर लग रहा है ।
प्रीति की भाषा अपावन हो चुकी है ।
आज की मुस्कान से डर लग रहा है।।