मुक्तक
एक मुक्तक
सिवा तेरे प्रिये सुन लो नहीं कुछ सूझता है अब ।
वही पोखर वही नीरज हृदय भी ऊबता है अब ।
तेरे बिन अब भला कैसे ख़ुशी दस्तक यहाँ देगी –
तेरे बिन मुस्कराने का सबब दिल पूछता है अब।।
—सतीश पांडेय
एक मुक्तक
सिवा तेरे प्रिये सुन लो नहीं कुछ सूझता है अब ।
वही पोखर वही नीरज हृदय भी ऊबता है अब ।
तेरे बिन अब भला कैसे ख़ुशी दस्तक यहाँ देगी –
तेरे बिन मुस्कराने का सबब दिल पूछता है अब।।
—सतीश पांडेय