मुक्तक
रात भर चित्र तेरा निहारा किए ।
नाम तेरा ही अक्सर पुकारा किए ।
लाज़मी था मुहब्बत में अलगाव फिर-
ज़िन्दगी को अकेले गुजारा किए ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
रात भर चित्र तेरा निहारा किए ।
नाम तेरा ही अक्सर पुकारा किए ।
लाज़मी था मुहब्बत में अलगाव फिर-
ज़िन्दगी को अकेले गुजारा किए ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी