Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jun 2022 · 14 min read

मुक्तक

मौत तक ज़िंदगी को संभाल
यार कुछ गलतफहमियां पाल।
अब्र ,कब्र ज़ब्र और है सब्र भी
यही तो है कुदरत का कमाल।
-अजय प्रसाद

सवाल ये है कि जवाब क्या दूँ
ज़िंदगी तुझे मैं हिसाब क्या दूँ।
जो रखतें हैं ठोकरों में ताज़ को
अब उन्हे भला खिताब क्या दूँ।
-अजय प्रसाद

सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज़ को
जैसे सौ झूठ दबा देतें हैं एक सच को ।
कौन खुश है यारों याँ अपनी ज़िन्दगी से
कुछ न कुछ है रहता शिकायत सब को ।
-अजय प्रसाद

उसकी महफिल से हो कर आया हूँ
अपने होशोहवास खो कर आया हूँ।
चेह्रे पे ओढ़ कर सुकून का लबादा
चैनो-अमन से हाथ धो कर आया हूँ।
-अजय प्रसाद

बुरा नहीं लगता अब बुराई देख कर
हाँ सहम जाता हूँ सच्चाई देख कर।
इस कदर लूटा है रौशनी ने हमें यारों
डर लगता है अपनी परछाई देख कर ।
-अजय प्रसाद

सादगी,सलीका और सच्चाई
अरे!क्या बात कर रहे हो भाई ।
लोग कहते हैं है बहुत आसां
गलत तरीकों से करना कमाई
-अजय प्रसाद

सब्र का फल मीठा होता है
हाँ मगर बेहद फ़ीका होता है ।
होती हैं ख्वाहिशें जब खफ़ा
फ़िर बेमानी फल्सफ़ा होता है ।
-अजय प्रसाद

बेहतर की कोशिश में और बद्तर हो रहा है
महंगाई,बेरोजगारी को विकास ढो रहा है ।
अच्छा है खुशफहमियाँ पाल रक्खें हैं यारों
जमाना गफ़लत की गहरी नींद सो रहा है ।
-अजय प्रसाद

थक हार कर आखिर वो बैठ गया
कोस के खुद तक़दीर को बैठ गया ।
ज़िन्दगी है तो जद्दो-जहद है तय
फक़त यही सोंच कर वो बैठ गया ।
उस से पहले भी कई खड़े हैं दर पे
इल्म हो गया जब उसे तो बैठ गया ।
-अजय प्रसाद

झूठा ही सही दिलासा तो दे
या खुदा कोई झांसा तो दे ।
कब तक लौटूंगा खाली हाथ
मेरे हिस्से खुशी ज़रासा तो दे ।
-अजय प्रसाद

वक़्त के रहमोकरम पर टिका कर गई
ईश्क़ में मुझे वो अंगूठा दिखा कर गई।
वादा किया था सात जन्मों के साथ का
और इसी जनम में पीछा छुड़ा कर गई।
-अजय प्रसाद

खामियों को खूबियों में बदल
देखता है क्या पीछे ,आगे चल ।
कौन पूछता है हारने वालों को
हार को अपनी जीत में बदल ।
-अजय प्रसाद

पाखंडीयों के मुहँ से प्रवचन सुन रहा हूँ
देख के हुजूम भक्तों का सर धुन रहा हूँ।
मत पूछिये हालत मेरी बेबसी के यारों
पिस गया जैसे जौ के साथ घुन रहा हूँ।
-अजय प्रसाद

अक़्ल से जो अपंग है
सियासत में वो दबंग है ।
देख हालात संसद का
ज्म्हुरियत आज दंग है ।
-अजय प्रसाद

व्यक्ति मरता है उसका विचार नहीं
खाक होता है बदन ब्यवहार नहीं ।
घर,परिवार,रिश्ते,नाते के साथ साथ
खत्म होती है सांसें पर संस्कार नहीं ।
-अजय प्रसाद

रिश्तों का जो ये जाल है
यही जी का जंजाल है ।
जिसके पास है जितना
उतना ही वो कंगाल है ।
***
सब्र का फल मीठा होता है
हाँ मगर बेहद फ़ीका होता है ।
होती हैं ख्वाहिशें जब खफ़ा
फ़िर बेमानी फल्सफ़ा होता है
***
चैनो-अमन अगवा करने वाले
भला हो सब भगवा करने वाले ।
आज वही लोग हैं खौफज़दा
जो थे कभी बलबा करने वाले ।
-अजय प्रसाद

सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज़ को
जैसे सौ झूठ दबा देतें हैं एक सच को ।
कौन खुश है यारों याँ अपनी ज़िन्दगी से
कुछ न कुछ है रहता शिकायत सब को ।
-अजय प्रसाद
वक्त के गूजरने का एहसास किसे है
‘वो’भी गूजर जाएगा बिश्वास किसे है ।
खुश रहें जिस हाल में रक्खें खुदा हमें
बेहतर ज़िंदगी की अब आश किसे है।
हाँ ज़रूरतें मार देतीं हैं ज़मीर हमारा
वर्ना बेमतलब जी हुजूरी रास किसे है ।
-अजय प्रसाद

क़त्ल का इलज़ाम भी मक़्तूल पे गया
सबूत औ दलीलें सारी फ़िज़ूल मे गया ।
मुंसिफ भी मेहरबाँ हुआ मुजरिम पे यूँ
खिलाफ़ वो अपने ही उसूल के गया ।
-अजय प्रसाद

अपार्टमेन्ट में तुम आँगन तलाश करते हो
यानी पतझड़ में सावन तलाश करते हो।
जंगलों को काट कर घर सजाया है तुमने
आज तुम ये आक्सीजन तलाश करते हो ।
-अजय प्रसाद

दिखाया जो हाथ मैंने नज़ूमी से
कहा,लकीरें तो खफ़ा हैं तुम्ही से ।
कोई कसूर नहीं है तक़दीर का भी
बेड़ा गर्क करते हो खुद शायरी से ।
-अजय प्रसाद

देखा विरोधियों का चेहरा कैसे खिल गया
आखिर सियासी ओक्सिजन जो मिल गया ।
जलती चिताएँ,बिलखते लोग,चुनावी जीत
विदेशी मदद,आत्म निर्भर भारत हिल गया ।
नुक्स निकालना,गलियाँ देना,और कोसना
विपक्षियों को दिल का सकुन मिल गया ।
-अजय प्रसाद
बेहतरीन होना भी ज़ुर्म है जमाने में
लग जाते हैं जलने वाले उसे मिटाने में।
***

कोसना सरकार को जिसे आ गया
विपक्षियों को वो शख्स भा गया ।
साथ दिया जब तक सेक्युलर रहे
खिलाफ हुए,तो काफिर कहा गया ।
अजय प्रसाद

जब होनी नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ
हैं खड़े मेरे खिलाफ गर खुदा , क्या करूँ ।
पहले जैसी वो रगबत भी नहीं रही यारों
खुश तो दूर,रहतें नहीं हैं खफ़ा क्या करूँ ।
-अजय प्रसाद

मुझे तू और तबाही के मन्ज़र न दिखा
खोखले इन्क़लाब के समंदर न दिखा
भला होगा खौफज़दा अब क्यों कोई
मर चुका है ज़मीर उसे खंजर न दिखा
सदमे में जम्हुरीयत है जहालत देखकर
सियासत में है कौन सितमगर न दिखा ।
-अजय प्रसाद

ज़िंदगी आजकल बे-रहम हो रही है
इंसानियत भी अब खतम हो रही है ।
प्यार, दोस्ती, एहसान,वफ़ा, हैं खफ़ा
अहमियत इन सबकी कम हो रही है ।
-अजय प्रसाद

लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

एक दिन गुमनाम ही जहां से गुजर जाऊँगा
ज़िंदगी तेरी नज़रों से जब मैं उतर जाऊँगा ।
कुछ लोग आएंगे मेरी मैयत पे आसूँ बहाने
ओढ़ कफ़न अपने-वजूद से मुकर जाऊँगा ।
-अजय प्रसाद

शायरी में जान ,डाल रहा हूँ मैं
हक़ीक़ते जहान डाल रहा हूँ मैं ।
हुस्नोईश्क़ पे लिखनेवाले हैं ढेरों
बेबसों की दास्तान डाल रहा हूँ मैं।
-अजय प्रसाद

साहित्यकार आप बड़ा सोफिस्टिकेटेड है
रचनाएँ भी आपकी बहुत शेलीब्रेटेड हैं ।
मेरी इतनी ज़ुर्रत कहाँ लूँ आप से पंगा
आप तो इस फील्ड में बेहद डॉमिनेटेड हैं ।
-अजय प्रसाद

चलो माना ‘वो’ तुम्हें पसंद नहीं
मगर क्या तुम भी गैरत मंद नहीं।
नुक्स निकाल के खुश मत रहना
बुराई करने से तो होगे बुलंद नहीं ।
पेश तो करो नई मिसाल तुम कोई
बस बन जाना कोई जयचन्द नहीं।
-अजय प्रसाद
जल रही है ये जनता दिलजले की तरह
हैसियत हैं जैसे बीड़ी, अधजले की तरह ।
सियासत सितमगर कब नहीं रही दोस्तों
हिला देती हैं हौसले जलजले की तरह ।
खुशियों को खुशामद पसंद है बेहद यहाँ
और गम गले लग रहें सिलसिले की तरह ।
-अजय प्रसाद

चुगलखोरी,चापलूसी,चमचागीरी,मतलबपरस्ती में निपुण है
मतलब उस व्यक्ति में तरक्की करने के सौ फीसदी गुण है ।
मुस्कुराकर मिलता है,हाथ मिलाता है और लगता है गले भी
मगर उसकी नीयत में खोंट ही उसका सबसे बड़ा अवगुण है ।
-अजय प्रसाद

अभी मरा नहीं है ज़मीर मेरा
करेगा क्या भला अमीर मेरा ।
जब तक बुलंद हैं हौसले यारों
क्या बिगाड़ लेगा तक़दीर मेरा ।
-अजय प्रसाद

लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

लिखनेवाले तो हैं बहुत,पढ़ने वालों की कमी है
इससे बड़ी साहित्य की और क्या बेइज्ज़ती है ।
नज़रंदाज़ कर मौजूदगी अच्छी रचनाओं की
बिना कुछ कहे गुज़र जाना भी तो ज़्यादती है ।
माना के है नहीं आपके कदेसुखन के बराबर
पर क्या आपके मशवरा के लायक भी नहीं है ।
-अजय प्रसाद

चल कर किसी चौराहे पर चिल्लातें हैं
उन महापुरुषोँ को भी ज़रा सुनाते हैं ।
जिनकी मूर्तियाँ लगाई है हुक़क़ाम ने
असलियत क्या है बुतों को बताते हैं ।
-अजय प्रसाद

भटकना है मेरी फितरत तो मंजिल क्या करे
बेवफ़ा है मेरी तकदीर,तो संगदिल क्या करे ।
तन्हाईयों ने की है इस कदर मेरी तीमारदारी
वीराने अब हैं मेरी जागीर महफ़िल क्या करे ।
-अजय प्रसाद

लौट आया हूँ आज से मै अपने काम पे
कर्तव्यों को ले जाना है मुझे मुकाम पे ।
जुट जाना है शागिर्दों को फिर सँवारने मे
करनी है भविष्य मजबूत उनके नाम पे।
-अजय प्रसाद

अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो ।
-अजय प्रसाद

ज़ोशो जुनूँ का है अब इज़हार मजहब
हो गया है आदमी का शिकार मजहब ।
करतें कहाँ हैं लोग अब दिल से इबादत
बन गया है राजनीतिक व्यापार मजहब ।
-अजय प्रसाद

किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद
जो होता है सब खुदा की मर्ज़ी से होता है
मगर तबाही इंसान की खुदगर्ज़ी से होता है ।
लगे तो रहते हैं “सत्यमेव जयते “की तख्तियां
कहाँ काम दफ्तरों में फक़त अर्जी से होता है ।
-अजय प्रसाद
कई बार कई चिज़ें सही नहीं होती
जैसी दिखती है वो वैसी नहीं होती ।
हर बात खुदा ने है तय कर दिया
यहाँ पे कुछ भी अनकही नहीं होती ।
-अजय प्रसाद
संयम कम और आकांक्षाएँ अपरीमित
लालसाएं असंख्य और साधन सीमित ।
अनियंत्रित जीवन की अनंत प्रतिस्पर्धा
अनवरत संघर्ष है दिनचर्या अनियमित ।
-अजय प्रसाद
वक्त के साथ ही बदलाव आता है
सोंच नयी नया मिज़ाज लाता है ।
तोड़ सारी पुरानी बंदिशे जग की
नया दौर नये रशमों रिवाज़ लाता है ।
-अजय प्रसाद

बंदिशो में रहने का आदी नहीं हूँ
अहिंसा का पुजारी गाँधी नहीं हूँ ।
दिल गर जीत लिया,जान दे दूंगा
लीडरों सा मै अवसरवादी नहीं हूँ ।
-अजय प्रसाद

रो रही थी आज विचारी गाँधी की तस्वीर
हिंसक ही कर रहे थे अहिंसा पर तक़रीर ।
राम राज के नाम पे वर्षो होती रही है लूट
जाने लोकतंत्र की कब बदलेगी तक़दीर ।
-अजय प्रसाद
लाठी में उसकी कोई आवाज़ नहीं होता
बगैर उसके रज़ामंदी के आगाज़ नहीं होता ।
माँ-बाप की दुआ,रब की रहमत भी होती है
फ़कत हौसले से यहाँ परवाज़ नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

किसी कमजर्फ़ से अब इल्तिजा क्या करूँ
जब होनी ही नहीं कबूल तो दुआ क्या करूँ ।
चाहता तो हूँ चलना इमानदारी के रास्तों पर
मगर साथ ही न दे जब ये जमाना क्या करूँ
-अजय प्रसाद
गरीबी में जीना और गुमनाम गुजर जाना है
शोषितों,पीड़ितों तुम्हें ये काम कर जाना है ।
मत रखना उम्मीद अपनी तरक़्क़ी का कभी
हर दौर में बस अपने वजूद से मुकर जाना है ।
-अजय प्रसाद

खुदगर्ज़ी से भरे खोखले आश्वासन
बेहद कारगर है बनावटी अपनापन ।
आजकल वो सफल है सियासत में
जो भी करे इमानदारी से दोहरापन।
-अजय प्रसाद

हुस्न से अदावत न कर
इश्क़ से वगावत न कर ।
जीना है खुशहाल ज़िंदगी
मौत से तू नफ़रत न कर ।
-अजय प्रसाद

मजबूरियाँ मेरी आजकल मुझे चिढ़ा रहीं हैं
मायूसी अपनी कामयाबी पे मुस्कुरा रही हैं ।
अश्क़ आँखों में आने से भी लगे है मुकरने
ख्वाहिशें खामोशी से खुदकुशी किये जा रही है ।
मौत हो गयी है मेरे खिलाफ़ रूठ कर मुझसे
ज़िंदगी रोज़ नये हादसों से दिल बहला रही हैं ।
-अजय प्रसाद

भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
रहम दिलों में भी जरा नहीं होता ।
बेहद उन्मादि खौफनाक इरादों पे
इंसानियत का पहरा नहीं होता ।
बस हिंसक बेकाबू सोंच होती है
रिश्ता मज़हब से गहरा नहीं होता ।
-अजय प्रसाद

खुद के अन्दर , ज़मीर ज़िंदा रख
भले हो दिल से,अमीर ज़िंदा रख ।
ठीक है तू होगा दौलत मंद मगर
ज़ेहन में एक फ़कीर ज़िंदा रख ।
नामुमकिन है कि मासूमियत लौटे
खुद में बचपन शरीर ज़िंदा रख ।
-अजय प्रसाद
बदसूरत को हसीन बताऊँ कैसे
आसमां को ज़मीन दिखाऊँ कैसे ।
कहतें हैं मुल्क में सब खैरियत है
खुद को ये यकीन दिलाऊँ कैसे ।
-अजय प्रसाद

मुझे तू और तबाही के मन्ज़र न दिखा
खोखले इन्क़लाब के समंदर न दिखा
भला होगा खौफज़दा अब क्यों कोई
मर चुका है ज़मीर उसे खंजर न दिखा
सदमे में जम्हुरीयत है जहालत देखकर
सियासत में है कौन सितमगर न दिखा ।
-अजय प्रसाद

रोज़ खुद को आजमाता हूँ
खफ़ा हो के भी मुस्कुराता हूँ ।
मौत महफ़ूज है ज़िंदगी तले
खुद को ही यकीं दिलाता हूँ ।
-अजय प्रसाद
सत्ता की शिकार अवाम हो रही
ज़्म्हुरियत अब निलाम हो रही ।
कल तलक थीं जो बातें पोशीदा
आजकल वो खुलेआम हो रही ।
-अजय प्रसाद

तेरी नज़रो में मैं बुरा ही सही
दे मुझको तू बददुआ ही सही ।
जीउँगा तेरे नफरत के साये में
इश्क़ मेरा सबसे जुदा ही सही ।
-अजय प्रसाद
ज़िंदगी आजकल बे-रहम हो रही है
इंसानियत भी अब खतम हो रही है ।
प्यार, दोस्ती, एहसान,वफ़ा, हैं खफ़ा
अहमियत इन सबकी कम हो रही है ।
-अजय प्रसाद
भयंकर तबाही की जद में है
आजकल आदमी बेहद में है ।
इजाद कर लिये हैं कई नुस्खे
खुश वो अपने खुशामद में है ।
-अजय प्रसाद
कबाड़ से कमाई की उम्मीद वो करतें हैं
यहाँ कुछ बच्चे कचरे को गौर से पढ़तें हैं
उन्हें अपने भविष्य की कोई फ़िक्र नहीं
हर रोज़ जो बेरहम वर्तमान से लड़तें हैं ।
-अजय प्रसाद

इक हमाम में यारों यहाँ सब नंगे हैं
बाहर से दिखे साफ़ भीतर से गंदे हैं ।
नेता-अभिनेता,या पुलिस-प्रशासन
यारों सब आला दर्जे के भिखमंगे हैं।
साठगांठ के बेजोड़ सिकंदर हैं सारे
गोरे गोरे लोग औ इनके काले धंदे हैं।
-अजय प्रसाद

अहंकार से बढ़ कर कोई बीमारी नहीं
लालच से बड़ा कोई भी शिकारी नहीं ।
ज़िंदगी खुशगवार उसकी हो जाती है
जो समझता खुद को अधिकारी नहीं ।
-अजय प्रसाद

गिरे हुए लोग क्या किसी को उठाएंगे
वो तो ओछी मानसिकता ही दिखाएंगे।
विरासत में मिली हैं जो बिसंगतियां
तो कहाँ से अच्छे संस्कार ला पाएंगे।
-अजय प्रसाद

फना होने के एहसास से डरता है
वो अपने आस-पास से डरता है।
पहले अपनी हस्ती से डरता था
अब आम और खास से डरता है ।
-अजय प्रसाद

जल गई है रस्सी मगर एँठन नहीं गया
दिल से अभी तक वो बहम नहीं गया।
रौनक तो रूठ के महफिल से जा चुकी
झूठे दिखावे का यारों अदब नहीं गया ।
-अजय प्रसाद

वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद

वो जो चीखते थे रील लाईफ में
आज क्यों खामोश हैं वाईफ़ पे ।
-अजय प्रसाद

खोखले रंगीनियों में डूबे हुए लोग
ज़िंदगी की जंग से ऊबे हुए लोग।
बातें करते हैं उन आदर्शो की आज
खुद की हस्ती के मनसूबे हुए लोग ।
-अजय प्रसाद

उंची दुकान और फीकी है पकवान
कितने स्वार्थी होतें हैं नकली महान।
खेल कर जज़्बातों से भूला देतें हैं ये
आखिर हैं किस मिट्टी के बने इन्सान।
-अजय प्रसाद

‘पूछता है भारत’ कब तक करोगे तिज़ारत
मुद्दे के नाम पे टुच्चे बहस और सियासत ।
गले फाड़ कर जो ब्रेकिंग न्यूज़ हो दिखाते
क्या ऐसे ही करोगे तुम सच की हिफाज़त।
-अजय प्रसाद

ग्लैमर की गलीज गलियों मे गुमनाम हैं कई
चकाचौंध के पीछे छिपे हुए बदनाम हैं कई।
बेहद खोखली खुशि और बनावट की हँसी
हक़ीक़त है यहाँ यारों नमक हराम है कई ।
-अजय प्रसाद

हिन्दी की अहमियत की बात करतें हैं
आप तो मासूमियत की बात करतें है ।
जहाँ पाबंदियां है हिंदि बोलने पर भी
उस जगह हिंदी दिवस बात की करतें हैं ।
-अजय प्रसाद

दौर कोई हो,राजा कोई हो,प्रजा वही है
मजलूमों और बेबसों की दशा वही है ।
***
सच्चाई तस्वीरों में हो ज़रूरी तो नहीं
खुदाई फ़कीरों में हो ज़रूरी तो नहीं ।
कर रहे हैं लोग जेहन से भी गुलामी
कलाई जंजीरों में हो ज़रूरी तो नहीं।
***

मेरी मंजिल अलग मेरा रास्ता अलग है
मेरी कस्ती अलग मेरा नाखुदा अलग है ।
मेरे साथ चलने वाले ज़रा सोंच फिर से
मेरा हमसफर अलग मेरा कारवां अलग है
-अजय प्रसाद

हम हिन्दी भाषा का कभी अपमान नहीं करतें हैं
बस हिंदी दिवस के अलावे सम्मान नहीं करतें हैं।
-अजय प्रसाद

ये भी अजीबोगरीब तमाशा है
कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है।
कहने की कोई ज़रूरत नहीं है
दिखावे ढेर और फिक्र ज़रा सा है ।
-अजय प्रसाद
बेहद अफसोस है कि हिंदी दिवस मनाते हैं
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है विश्व को बताते हैं ।
-अजय प्रसाद

तो आप भी साहित्य में षडयंत्र के शिकार हो गए
भयंकर बुद्धिजीवी मानसिकता के विकार हो गए ।
तब तो आप किसी की भी सुनेंगे ही नहीं,क्या कहूँ
जब आप खुद ही अपने आप से दरकिनार हो गए ।
-अजय प्रसाद

आइने से कहो मेरा हिसाब कर दे
मेरे सामने मेरे उम्र-ए-पड़ाव रख दे।
कब,कैसे और कितना मैं बदल गया
आज तलक का जोड़ घटाव कर दे ।
-अजय प्रसाद

रोज़ खुद को मैं आजमाता हूँ
खफ़ा हो कर भी मुस्कुराता हूँ ।
मौत महफ़ूज है जिंदगी के तले
खुद को ही यकीन दिलाता हूँ ।
-अजय प्रसाद

जनता को भी जगना जरुरी है
लूटना सरकार की मजबुरी है ।
बहुत फायदे में रहतें हैं वो लोग
आती जिन्हें करनी जी हुजूरी है।
***

अगर सब खुदा की मर्ज़ी है
तो फ़िर बेशक़ खुदगर्ज़ी है।
सी देता है तन के ज़्ख्मों को
वक्त फकत नाम का दर्जी है।
-अजय प्रसाद

आसमान से गिरे खजूर में अटक गए
मुद्दे जो थे अपने रास्ते से भटक गए ।
न्यूज़ चैनलों ने तो बना दिया है त्रिशंकु
सच और झूठ के बीच हम लटक गए ।
कौन पूछता है हाल अवाम का यहाँ
बिचारे खुद ही सारे मसले गटक गए ।
-अजय प्रसाद

अच्छाइयाँ मेरी वो जानता है
मुझे अपना दुश्मन मानता है ।
जब जब है होती उसे ज़रुरत
तब तब ही मुझे पहचानता है ।
-अजय प्रसाद

परदे के पीछे के पाखंडी लोग
दौलत नशे में चूर घमंडी लोग।
कितने खोखले किरदार हैं ये
कलयुग के काकभुशंडि लोग।
-अजय प्रसाद

सत्य परेशान हो सकता है,पराजित नहीं
जब तक झूठ को कर दे वो साबित नहीं।
-अजय प्रसाद

सत्य जहाँ अकर्मण्य है
न्याय वहाँ पे नगण्य है ।
लालसा जब हो बेलगाम
सोंचता कौन पाप पुण्य है
-अजय प्रसाद

दोषियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई हो रही है
पुलिस-प्रशासन और सरकार उन्हें ढो रही है ।
कर रहें हैं सज़ा दिलाने का वे पुख्ता इन्तेजाम
और अदालत है कि समय का रोना रो रही है ।
-अजय प्रसाद

और क्या ??
मनाते तो हैं पुण्य तिथी व जयंती और क्या?
मृतात्मा महापुरुषोँ पर इससे ज्यादा गौर क्या?
उनके उच्च विचार भला हमारे किस काम के ?
हैं उनके लिए तो पुस्तकों से बेहतर ठौर क्या ?
-अजय प्रसाद

खाया जिस थाली में हमने उस में ही छेद किया
वतन के मसलों पर अक़सर ही मतभेद किया ।
अपनी डफली अपना राग हमेशा ही सुनाते रहे
औरों के लिए हमने कभी न कोई खेद किया ।
भाड़ में जाए अवाम हमें क्या लेना-देना है यारों
बस पैसों के लिए हमने खुद को मुस्तैद किया ।
-अजय प्रसाद

क्राईम को वो कम्युनल रंग देते हैं
इस तरहा से मामले को तूल देते हैं ।
सियासत की साजिश के क्या कहने
अपने बयानों से माहौल बदल देते हैं।
अजय प्रसाद

समाज जब सबकुछ चुपचाप स्वीकारता है
तब ये अनैतिकता अपने पाँव पसारता है ।
ध्रितराष्ट्र जब पुत्र मोह में चुपचाप रहता है
तभी द्रौपदी की साड़ी दुशासन उतारता है।
-अजय प्रसाद

किसी की भी मजबुरी में जो मज़ा तलाशतें हैं
दोज़ख में अपने लिए कड़ी सज़ा तलाशतें हैं ।
लानत है यारों ऐसे गिरे हुए बेगैरत इंसानों पर
चंद पैसों में जो मासूमों की कज़ा तलाशते हैं।
-अजय प्रसाद

अपनी नज़रों से खुद को गिरा कर आया हूँ
इंसानियत से पिछा मैं छुड़ा कर आया हूँ ।
किसी बात का होता मुझपे कोई असर नहीं
दिल को जब से मैं पत्थर बना कर आया हूँ ।
-अजय प्रसाद

क्या उन्हें मशवरा देना
बस हाँ में हाँ मिला देना ।
देखना दरक जाएगा खुद
दर्पण को उन्हें दिखा देना ।
क्या कहने उनकी हँसी का
फूल कोई जैसे खिला देना।
-अजय प्रसाद

आइये आसान को जटिल बनाते हैं
किसी

Language: Hindi
1 Like · 266 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मैंने आईने में जब भी ख़ुद को निहारा है
मैंने आईने में जब भी ख़ुद को निहारा है
Bhupendra Rawat
समंदर में नदी की तरह ये मिलने नहीं जाता
समंदर में नदी की तरह ये मिलने नहीं जाता
Johnny Ahmed 'क़ैस'
मुझसे जुदा होके तू कब चैन से सोया होगा ।
मुझसे जुदा होके तू कब चैन से सोया होगा ।
Phool gufran
चलना था साथ
चलना था साथ
Dr fauzia Naseem shad
मूर्ख व्यक्ति से ज्यादा, ज्ञानी धूर्त घातक होते हैं।
मूर्ख व्यक्ति से ज्यादा, ज्ञानी धूर्त घातक होते हैं।
पूर्वार्थ
हुनर
हुनर
अखिलेश 'अखिल'
सरसी छन्द
सरसी छन्द
Dr.Pratibha Prakash
“ख़्वाब देखे मैंने कई  सारे है
“ख़्वाब देखे मैंने कई सारे है
Neeraj kumar Soni
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
मोहब्बत जो हमसे करेगा
मोहब्बत जो हमसे करेगा
gurudeenverma198
"मेरी नज्मों में"
Dr. Kishan tandon kranti
वक़्त आज तेजी से बदल रहा है...
वक़्त आज तेजी से बदल रहा है...
Ajit Kumar "Karn"
..
..
*प्रणय प्रभात*
*बांहों की हिरासत का हकदार है समझा*
*बांहों की हिरासत का हकदार है समझा*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
3024.*पूर्णिका*
3024.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
All good
All good
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बच्चों ने वसीयत देखी।
बच्चों ने वसीयत देखी।
सत्य कुमार प्रेमी
*सर्दी (बाल कविता)*
*सर्दी (बाल कविता)*
Ravi Prakash
बुझ गयी
बुझ गयी
sushil sarna
. काला काला बादल
. काला काला बादल
Paras Nath Jha
व्यस्तता
व्यस्तता
Surya Barman
गुनाह ना करके भी
गुनाह ना करके भी
Harminder Kaur
तितली
तितली
Dr. Pradeep Kumar Sharma
हर इश्क में रूह रोता है
हर इश्क में रूह रोता है
Pratibha Pandey
झाग गुमसुम लहर के आंँसू हैं
झाग गुमसुम लहर के आंँसू हैं
Sandeep Thakur
विषय
विषय
Rituraj shivem verma
ऐ जिंदगी
ऐ जिंदगी
अनिल "आदर्श"
ज्ञानों का महा संगम
ज्ञानों का महा संगम
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
घुली अजब सी भांग
घुली अजब सी भांग
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
प्राकृतिक जब ठहर जाती है।
प्राकृतिक जब ठहर जाती है।
Rj Anand Prajapati
Loading...