मुक्तक
मुक्तक
न छेड़ो तार पीड़ा के दुःखे रग रग हमारा है।
न खीचों तार वीणा के बजाती धुन तुम्हारा है।
प्रिये, हिय में तुम्हारी वेदना के स्वर कहाँ गूंजे।
न सूझे राह अब कोई पथिक पथ का सहारा है।
कमल तालाब में खिलता ,खिलाता रूप यौवन का,
अमल आह्लाद से करता,पिलाता रूप उपवन सा।
न गूंजे गूंज भोरों की छिपा है जो कली में अब।
सम्हल अब तो सुरभि महके सुहाना रूप सावन सा।
चीनी मुखौटा
भले चीनी मुखौटा स्याह से स्याही यहाँ होगा।
अरे चीनी बिलौटा राह पर राही कहाँ होगा।
अबे मुख मोड़ ले चीनी पतिंगा आग से डर के।
उड़े उड़ कर मरे यदि चाह ले माही वहाँ होगा।