मुक्तक
हर कली सहमी हुई, गायब हुई हैं शोखियाँ,
चल पड़ी हैं आग लेकर, जाने कैसी आँधियाँ।
ये ज़माने के बदलते आज मन्ज़र देखिये,
डर रही हैं बागबां से भी चमन में तितलियाँ।
दीपशिखा सागर-
हर कली सहमी हुई, गायब हुई हैं शोखियाँ,
चल पड़ी हैं आग लेकर, जाने कैसी आँधियाँ।
ये ज़माने के बदलते आज मन्ज़र देखिये,
डर रही हैं बागबां से भी चमन में तितलियाँ।
दीपशिखा सागर-