मुक्तक
बड़ा मासूम है चेहरा है, निगाहें हैं बड़ी कातिल।
छलकते होंठ के प्याले, किए जीना बड़ी मुश्किल।
तुम्हारी गेसुओं की छांव में, रहने की हसरत थी-
मगर किस्तम में कोई और थी, जो हो गयी हासिल।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य
बड़ा मासूम है चेहरा है, निगाहें हैं बड़ी कातिल।
छलकते होंठ के प्याले, किए जीना बड़ी मुश्किल।
तुम्हारी गेसुओं की छांव में, रहने की हसरत थी-
मगर किस्तम में कोई और थी, जो हो गयी हासिल।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य