मुक्तक
अश्क हरपल बहाना नहीं जिंदगी।
हर घड़ी सर झुकाना नहीं जिंदगी।
सांस जबतक रहे आस मत छोड़ना
हार कर बैठे जाना नहीं जिंदगी।
जख्म अपना सभी से छुपाया गया।
अश्क आंखों में भर मुस्कुराया गया।
मौत से कम नहीं है जुदाई मगर-
दर्द दिल में हमेशा दबाया गया।
अश्क आंखों में बेसक छुपाया गया।
दर्द में भी सदा मुस्कुराया गया।
‘सूर्य’ रहता है तन्हा, सुनो हर घड़ी-
हर किसी से कहां दिल लगाया गया।
बिन तुम्हारे कहीं रह नहीं पा रहा।
मैं जुदाई का गम सह नहीं पा रहा।
याद तुम अब बहुत आ रही हो मगर,
हाय मजबूर दिल कह नहीं पा रहा।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य