मुक्तक
मुक्तक
1.
जब तुम्हें रिश्तों की पावनता का बोध होने लगे
जब तुम्हें रिश्तों की मर्यादा का भान होने लगे
जब तुम्हें रिश्ते , जीवन की संजीवनी नज़र आने लगें
तब समझना कि तुम्हारे भीतर सामाजिकता का बीज, अंकुरित होने लगा है ||
2.
जब तुम्हें किताबों से मुहब्बत होने लगे
जब पुस्तकों के विचार , तुम्हारे जीवन को दिशा देने लगें
जब किताबों की दुनिया ही , तुम्हारे जीवन का आधार महसूस होने लगे
तब समझना कि मंजिल की अग्रसर होने से , कोई तुम्हें रोक नहीं सकता ||
3.
जब घर – घर न होकर आशियाँ सा लगने लगे
घर के लोगों में , सामंजस्य बनाने लगे
श्रद्धा और सबूरी से , हर शख्स अलंकृत होने लगे
तब समझना तुम्हारा घर ही देवालय में परिणित हो चुका है ||