मुक्तक
मुक्तक
नींदक औषधि नीम सम, कड़वी है तासीर।
कमी हमारी देख वह, होता बड़ा अधीर।
करता भले आलोचना, देता हमको सीख-
अपनी कमियों के लिए , बने रहो गंभीर।२
निंदक जब नियरे रहे, अवगुण रहते दूर।
चलने को सदमार्ग पर, हम रहते मजबूर।
सदा बुराई ढूंँढ कर, सम्मुख लाता रोज-
ऐसे शुभचिंतक सखे, रखिए साथ जरूर।१
बिंदी, चूड़ी बिछिया,पायल, छीन गई मुस्कान।
जीवन में है घोर अंँधेरा, श्वेत हुआ परिधान।
देख सको तो आकर देखो, विधवा के हालात-
जबसे छोड़ गए तुम साजन, जग लगता वीरान।
सदा खुशियांँ नहीं रहती, सदा गम भी नहीं रहते।
जिगर पत्थर बना डाला, नयन अब नम नहीं रहते।
समय के साथ बदला है, जमाना भी अजी अब तो-
मुसीबत लाख आती हैं, निवारण कम नहीं रहते।
अंँधेरा है घना कुछ पल, उजाला खूब आएगा।
नजर यदि लक्ष्य पर होगी, विजय का गीत गाएगा।
घड़ी भर की मुसीबत है, खुशी का साल बाकी है-
अगर है हौसला कायम, मनुज तू जीत जाएगा।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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