मुक्तक
देखता हूँ कितनी रक़ीब है दुनिया,
मुझमें मौज़ूद है और दूर है दुनिया,
सूरज बनकर बैठा है जो मेरे अंदर,
कर रहा वही चकनाचूर है दुनिया,
देखता हूँ कितनी रक़ीब है दुनिया,
मुझमें मौज़ूद है और दूर है दुनिया,
सूरज बनकर बैठा है जो मेरे अंदर,
कर रहा वही चकनाचूर है दुनिया,