मुक्तक
वो पहले तो मिलने की कसमें खाने लगा
और फिर बिछड़ने के फायदे गिनाने लगा
वो महबूब नहीं था शायद कोई फरेबी था
वक्त गुजरते अपनी औकात में आने लगा
वो पहले तो मिलने की कसमें खाने लगा
और फिर बिछड़ने के फायदे गिनाने लगा
वो महबूब नहीं था शायद कोई फरेबी था
वक्त गुजरते अपनी औकात में आने लगा