मुक्तक
हुआ वीरान सा मौसम कहो मुसकाए कैसे हम,
आँखें हो गयीं क्यूँ नम तुम्हें समझाए कैसे हम,
अँधेरी रात की गहरी ख़ामोशी में हैं तनहा दिल
दिए की लौ हुई मद्धम ज़ख़्म दिखलाए कैसे हम….
हुआ वीरान सा मौसम कहो मुसकाए कैसे हम,
आँखें हो गयीं क्यूँ नम तुम्हें समझाए कैसे हम,
अँधेरी रात की गहरी ख़ामोशी में हैं तनहा दिल
दिए की लौ हुई मद्धम ज़ख़्म दिखलाए कैसे हम….