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6 Dec 2020 · 1 min read

मुक्तक

बूंद दरिया का हो या के चश्म का जब से बिकने लगे हैं
प्यास … हर कंठ के घाट पे साहिब सिसकने ने लगे हैं
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
4 Likes · 567 Views
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