मुक्तक
उसी की याद में हर दम तराने गीत लिखता हूँ
उठाऊं मैं कलम जब भी पुरानी प्रीत लिखता हूँ
हमारी लेखनी को जो सहारा मिल गया तेरा,
प्रणय की हार को भी मैं हमेशा जीत लिखता हूँ
तुकान्तो को मिलाने से, कभी कविता नहीं बनती।
न शब्दों को सजाने से, कभी कविता सही बनती।
सहेजे दिल में जो कवि ने भरे वो भाव कविता में,
लिखा स्पष्ट हो लेखन, तभी कविता सही बनती।
अधर ख़ामोश हैं मेरे भरा आंखों में पानी है।
हमारे इश्क़ की यारों बड़ी लंबी कहानी है।
भला कैसे बयां कर दूँ वो’ किस्सा मैं मुहब्बत का,
इधर ज़ालिम जमाना है उधर क़ातिल जवानी है।
अदम्य