मुक्तक
बहुत शोर है वादी में कि आदम भूखा नंगा है
मुझे ऎसा लिबास चाहिए भूख जिस में दिखता नहीं
~ सिद्धार्थ
फिर तुम मुझे याद आए फिर यादों ने ली है अंगड़ाई
हाय कोई तो ऐसा लम्हा गिरे
जिसमें सांस मैंने ली हो और याद न तेरी आई …
~ सिद्धार्थ
बहुत शोर है वादी में कि आदम भूखा नंगा है
मुझे ऎसा लिबास चाहिए भूख जिस में दिखता नहीं
~ सिद्धार्थ
फिर तुम मुझे याद आए फिर यादों ने ली है अंगड़ाई
हाय कोई तो ऐसा लम्हा गिरे
जिसमें सांस मैंने ली हो और याद न तेरी आई …
~ सिद्धार्थ