मुक्तक
मुक्तक:-
उसे पाकर जमाने में दुबारा खो नहीं सकता।
जुदाई में मोहब्बत की मैं खुलकर रो नहीं सकता।
दिलों में दर्द देती है बड़ी बेदर्द यादें है,
जगाती रात भर मुझको चैन से सो नहीं सकता।
हमारा औ तुम्हारा साथ ज़माने को नही भाता।
मिले जो चोरी से दोनों ज़माने को नहीं भाता।
न समझे ये ज़माने में दीवानों की बातों को,
करें गर फोन पर बातें जमाने को नही भाता ।