मुक्तक
रूह कांपे दिल मचलता एक तड़प सीने में है
भूखे प्यासे दर भटकना क्या मजा जीने में है
आंख से छलके ना आंसू गम है साया घना
जब नशा चढ़ता तो फिर क्या मजा पीने में है
रूह कांपे दिल मचलता एक तड़प सीने में है
भूखे प्यासे दर भटकना क्या मजा जीने में है
आंख से छलके ना आंसू गम है साया घना
जब नशा चढ़ता तो फिर क्या मजा पीने में है