मुक्तक
देर तक न देख सका वो यार मेरा, मेरे जनाजे को
मैं उसके आंखों से गया लम्हा बन बह निकली
~ सिद्धार्थ
गर होती कहीं दुआ कबूल तो, सच… दुआ मांगती मैं
इश्क करे बर्बाद इस क़दर कि इश्क से पनाह मांगती मैं
~ सिद्धार्थ
मुहब्बत का कहीं कोई उस्ताद नहीं होता
दिल के जमीं पे कोई कोई मदरसा नहीं होता
~ सिद्धार्थ