मुक्तक
वो अब भी मुझ में कुछ हिस्सों का किस्सा बन कर छूटा है
कुछ उसके घर में मैं छूटी हूँ, कुछ मेरे घर में वो छूटा है !
…सिद्धार्थ
सभी अपने तर्ईं धार लिए फिरते हैं
कटने वालों की दरकार लिए फिरते हैं !
~ सिद्धार्थ
कौन करे परस्तिश उसकी
खुदा हुजरों में कैद हुआ है
हालत ए हाल थी ख़राब उसकी
सो यार मेरा खुदा सा हुआ है
~ सिद्धार्थ
परस्तिश = पूजा
हुजरा = पूजा गृह