मुक्तक
भटकना है मेरी फितरत तो मंजिल क्या करे
बेवफ़ा है मेरी तकदीर,तो संगदिल क्या करे ।
तन्हाईयों ने की है इस कदर मेरी तीमारदारी
वीराने अब हैं मेरी जागीर महफ़िल क्या करे ।
-अजय प्रसाद
लौट आया हूँ आज से मै अपने काम पे
कर्तव्यों को ले जाना है मुझे मुकाम पे ।
जुट जाना है शागिर्दों को फिर सँवारने मे
करनी है भविष्य मजबूत उनके नाम पे।
-अजय प्रसाद
अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो
-अजय प्रसाद
अपने इमानदारी की बेबसी पे मायुस न हो
खोकर आत्मसम्मान कभी चापलूस न हो ।
मतकर मिन्नतें अपनी जाया किसी खुदगर्ज पे
भूल जा तु उसे दिल में जिसके खुलूस न हो ।
-अजय प्रसाद
ज़ोशो जुनूँ का है अब इज़हार मजहब
हो गया है आदमी का शिकार मजहब ।
करतें कहाँ हैं लोग अब दिल से इबादत
बन गया है राजनीतिक व्यापार मजहब ।
-अजय प्रसाद
किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद
जो होता है सब खुदा की मर्ज़ी से होता है
मगर तबाही इंसान की खुदगर्ज़ी से होता है ।
लगे तो रहते हैं “सत्यमेव जयते “की तख्तियां
कहाँ काम दफ्तरों में फक़त अर्जी से होता है ।
-अजय प्रसाद
कई बार कई चिज़ें सही नहीं होती
जैसी दिखती है वो वैसी नहीं होती ।
हर बात खुदा ने है तय कर दिया
यहाँ पे कुछ भी अनकही नहीं होती ।
-अजय प्रसाद
संयम कम और आकांक्षाएँ अपरीमित
लालसाएं असंख्य और साधन सीमित ।
अनियंत्रित जीवन की अनंत प्रतिस्पर्धा
अनवरत संघर्ष है दिनचर्या अनियमित ।
-अजय प्रसाद
वक्त के साथ ही बदलाव आता है
सोंच नयी नया मिज़ाज लाता है ।
तोड़ सारी पुरानी बंदिशे जग की
नया दौर नये रशमों रिवाज़ लाता है ।
-अजय प्रसाद