मुक्तक
खुद के कर्मों पर विचार कर लिया जाए,
एक एक अनाथ को गोद अगर लिया जाए,
होने लगेंगे गुनाह अपने आप ही कम साहब
खुदा का नाम गर शामों -सहर लिया जाए।
कितने स्वार्थी हो गए हैं हम,
प्रकृति को कैसे धो रहें हैं हम,
पेड़ काटने से अभी बाज़ नहीं आये,
खुद के लिए ज़हर बो रहे हैं हम।
जनसंख्या तो बढ़ती जा रही है,
पर इंसानियत सिमटती जा रही है,
भौतिक संसाधनों की कमी नहीं है,
जीवनदायिनी गैस घटती जा रही है।
इंसान इंसानियत को मार देता है,
क्या ये दिल को कभी करार देता है,
कभी इक छोटा-सा उपकार कर देखें,
वो पल मन को खुशी से तार देता है।
नूरफातिमा खातून नूरी
जिला-कुशीनगर