मुक्तक
तक़सीम हुआ था मुल्क मसाइलों के लिए क्या
आज़ादी हमने पाई इन काहिलों के लिए क्या ।
देते खोखले आश्वासन,बहाते हैं घड़ियाली आसूँ
जाँ गँवाई जवानों ने इन जाहिलों के लिए क्या
दफन है दफ्तरों में तरक्की अनगिनत गावों की
किए थे वायदे फक़त फाइलों के लिए क्या ।
-अजय प्रसाद
बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद
कोस मत अंधेरे को , दिया जला
सोंच मत किसने किया तेरा भला ।
खौफ़ क्या होगा तुझे हादसों से
हादसों के साये में ही तू है पला ।
-अजय प्रसाद
आकड़ों में उलझ कर अकड़ गये वो
असलियत की ज़मीं से उजड़ गये वो ।
सिर्फ़ एलानों से फायदे कुछ नहीं होते
जब मैंने कहा तो मुझपे बिगड़ गये वो ।
-अजय प्रसाद
टूटेगा एक दिन देखना ये गरूर तेरा
नजर में जब आ जाएगा कसूर तेरा ।
हो जायेगी नफ़रत अपने आप से ही
उतरेगा जिस दिन ये नशा हुजूर तेरा ।
-अजय प्रसाद
जान पर खेल जो कर जान बचा रहे हैं
खुद को मुश्किलों में भी आजमा रहे हैं ।
रहम कर या खुदा अपने नेक बंदो पर
मरीजों के लिए जो आज मसीहा रहे हैं ।
-अजय प्रसाद
सरकारी इमदाद जैसे हो ईद का चाँद
थाना,दफ्तर या अदालत,शेर की मांद ।
हो प्राईवेट अस्पताल या प्राईवेट स्कूल
दोनो लूट रहे हैं आज अवाम को फांद ।
-अजय प्रसाद
फुर्सत मिले जो सोशल मीडिया से
तो कर लेना दो चार बातें भी माँ से ।
भले भूल जा तू मातृ दिवस मनाना
बस हरदिन चाहते रहना दिलोजाँ से ।
-अजय प्रसाद
क्या बकते हो,मज़दूर पैदल चल रहें हैं
वो तो बस अपनी हैसियत में ढल रहें हैं ।
सहूलियत सियासतदानों से न्यूज़ में है
हक़ीक़त रास्तों पे बेबस निकल रहें हैं ।
-अजय प्रसाद
अपनी शर्तों पे जिया है और कुछ नहीं
तुझ पे रहमते खुदा है और कुछ नहीं ।
जिंदगी भर बस मुसलसल जद्दोजहद
आंधियों में एक दिया है और कुछ नहीं ।
-अजय प्रसाद
मरना तो तय है ये जानते हैं सब
बस ये नही,कहाँ, कैसे और कब ।
माज़ी दफ़ा हैं मुस्तकबिल है खफ़ा
हाल के चाल पर टिके हुए हैं सब ।
-अजय प्रसाद
ज़ख्मों पे मरहम अब लगाता कौन है
इस कदर प्यार अब लूटाता कौन है ।
ये तो कमाल है यारों शायरी की वर्ना
शायरों को आजकल सताता कौन है ।
-अजय प्रसाद
चेह्र पे शिकन हो या माथे पसीना
सीखा है हमने हर हाल में जीना ।
मेहनत,मजदूरी है अपनी मजबूरी
हो सर्द रात या जून का महीना ।
-अजय प्रसाद
और भी है बहुत कुछ करना शायरी के सिवा
ज़िंदगी भर है आहें भरना शायरी के सिवा ।
तुम कहते हो कि यार “अपना टाईम आएगा ”
बस इसी इंतज़ार में है मरना शायरी के सिवा ।
-अजय प्रसाद
खुश मत होना तू दावते सुखन पा कर
मैने झेला हैं यारों मुशायरों में जा कर ।
दाद,दुआ,सलाम खैरियत तो खैर छोड़ो
डकार भी न ली,औरों के कलाम खा कर
-अजय प्रसाद
हादसों के जो लोग शिकार हो गये
लीडरों के वास्ते मददगार हो गये ।
जीते जी जिनको कभी हक़ ना मिला
मरकर मुआवजो के हक़दार हो गये ।
-अजय प्रसाद
वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद
बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद
(दिल्ली दंगो के बाद)
कितना खौफनाक होगा वो मंज़र देख रहा हूँ
ज़मीं पे पड़े हूए लहू-लुहान पत्थर देख रहा हूँ ।
किस कदर इंसानियत हुई है शर्मसार दंगों में
तवाही से तब्दील ये रौनकें खंडहर देख रहा हूँ ।
सहमे-सहमे चेहरे,सुनसान सड़कें,बेनूर गलियाँ
अपनी बेगुनाही पे खामोश है खंजर देख रहा हूँ ।
-अजय प्रसाद
मजदूरों के मजबूरियों का मज़ाक न बनाएं
खींचकर तस्वीरें उनकी उन्हें और न सताएं ।
करना है मदद हक़ीक़त में,तो खामोशी से करें
करके सरेआम दिखावा यारों उन्हें और न गिराएं ।
-अजय प्रसाद
शेरों-शायरी में खुद को कर तबाह रहा हूँ
फक़त दिल रखने को कर वाह वाह रहा हूँ ।
तारीफ़ के बदले ही मिलतें हैं यारों तारीफ़
इसी रिश्ते को फ़ेसबुक पर निबाह रहा हूँ ।
लाइक्स और कमेंट्स के फिराक में दोस्तों
ऊल-जुलूल पोस्टों पर भी डाल निगाह रहा हूँ ।
-अजय प्रसाद
आईये हम सब मिलकर कातिल तलाश करें
कौन कौन थे इस ज़ुर्म में शामिल तलाश करें ।
मौके का फायदा उठाने के लिए ही सही यारों
मिडिया,लीडर,शायर ओ आमिल तलाश करें ।
-अजय प्रसाद
फक़त मुझसे ही वो मेरी बुराई करता है
इस तरह मेरी हौसला अफजाई करता है ।
छा जाती है चेहरे पे खुशी देखते ही मुझे
मतलब मुझसे प्यार तो इन्तेहाई करता है ।
कहीं लग न जाये नज़र किसी रक़ीब की
बड़ी बेरुखी से वो मेरी पज़ीराई करता है ।
-अजय प्रसाद
इन्तेहाई = बहुत
पज़ीराई =स्वागत welcom
रक़ीब = प्रेम से प्रतिद्वंदिता करने वाले
सत्य जहाँ भी अकर्मण्य है
न्याय वहाँ पे नगण्य है ।
लालसा जब हो बेलगाम
सोंचता कौन पाप पुण्य है ।
वासना जहाँ है विराजमान
प्रेम अपराध एक जघन्य है ।
-अजय प्रसाद
चाहता मैं हूँ कि वो खफ़ा ही रहे
वास्ते उसके दिल में वफा ही रहे ।
जिसके बाद कुछ लिखा न जाय
मेरे लिये वो आखरी सफ़ा ही रहे ।
-अजय प्रसाद
तजुर्बे की ताकत तुम क्या जानो
बुजुर्गो की हालत तुम क्या जानो
कितना असर है दुआओं में इनके
टल जाती है आफत तुम क्या जानो
-अजय प्रसाद
जब आइने तुम्हें भा ने लगे
और अकेले में मुस्कुराने लगे ।
समझ लेना तुम्हारी खैर नहीं
जब नींद ही तुम्हें जगाने लगे ।
-अजय प्रसाद
वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद
या रब मेरे दिल को पत्थर कर दे
या मजलूमों के दिन बेहतर कर दे ।
-अजय प्रसाद
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चाहता मैं हूँ कि वो खफ़ा ही रहे
वास्ते उसके दिल में वफा ही रहे ।
जिसके बाद कुछ लिखा न जाय
मेरे लिये वो आखरी सफ़ा ही रहे ।
-अजय प्रसाद
***
वजूद समंदर की कतरों से है
हैसियत ज़्ख्मों की अपनों से है ।
खामोशी अदा है गहराइयों की
शोर तो कम अक्ल लहरों से है ।
-अजय प्रसाद
***
और इससे बुरा होगा क्या हाल मेरा
वक्त करता है अक्सर इस्तेमाल मेरा ।
ठोकरें खाकर मै सम्भलता कैसे यारों
रास्तों ने रोका है सफ़र अड़ंगा डाल मेरा ।
-अजय प्रसाद
***
सरकारी इमदाद जैसे हो ईद का चाँद
थाना,दफ्तर या अदालत,शेर की मांद ।
हो प्राईवेट अस्पताल या प्राईवेट स्कूल
दोनो लूट रहे हैं आज अवाम को फांद ।
-अजय प्रसाद
खुद अपनी बातों पे भी अमल नहीं करता
ज़ख्मों की नुमाईश मै हर पल नही करता ।
बांट कर रख दे जो इंसानों को इंसानों से
ऐसी किसी बात की मै पहल नही करता ।
-अजय प्रसाद
बहुत हो चुकी तक़रीर अब तस्वीर बदलनी चाहिए
बेबस, बेघर मजलूमों की तक़दीर बदलनी चाहिए ।
न वो मंज़िल न वो मुसाफिर,और न वो रहनुमा रहे
बदल चुके हैं मसले अब तदबीर बदलनी चाहिए ।
-अजय प्रसाद
जो मर चुका है विचारों से
क्या लेना उसे अखब़ारों से ।
सुनता नहीं जब किसी की
क्या मतलब चित्कारों से
-अजय प्रसाद
लिखनेवाले तो हैं बहुत,पढ़ने वालों की कमी है
इससे बड़ी साहित्य की और क्या बेइज्ज़ती है ।
नज़रंदाज़ कर मौजूदगी अच्छी रचनाओं की
बिना कुछ कहे गुज़र जाना भी तो ज़्यादती है ।
माना के है नहीं आपके कदेसुखन के बराबर
पर क्या आपके मशवरा के लायक भी नहीं है ।
-अजय प्रसाद
यारों मैं भी एक फ़ेसबुकिया साहित्यकार हूँ
ये और बात मैं लिखता घटिया और बेकार हूँ ।
रहता हूँ तलाश में मैं दिन-रात मौज़ुआत के
रख देता हूँ उड़ेल पोस्ट पर मन के उदगार हूँ ।
-अजय प्रसाद
जैसा हूँ वैसा ही मंजूर कर
वरना अपने आप से दूर कर ।
रहने दे मुझको तू मेरी तरह
तेरी तरहा यूँ मत मजबूर कर ।
-अजय प्रसाद
हम होंगे कामयाब एक दिन
ज़र्रे से आफताब एक दिन ।
जो आज कह रहे हैं नक्कारा
कहेंगे वही नायाब एक दिन ।
-अजय प्रसाद
मेरी मंजिल अलग,मेरा रास्ता अलग है
मेरी कश्ती अलग ,मेरा नाखुदा अलग है ।
मेरे साथ चलने वाले ज़रा सोंच ले फ़िर से
मेरा हमसफर अलग,मेरा कारवां अलग है
-अजय प्रसाद
लिए कांधे पर खुद की लाश ज़िंदा हूँ
ज़िंदगी,मैं तेरी रुसवाई पे शर्मिन्दा हूँ ।
जो कभी किसी का एक जैसा न रहा
उसी वक्त के हाथों पीटा गया कारिंदा हूँ ।
-अजय प्रसाद
ये जो रिश्तों का जाल है
यही तो जी का जंजाल है ।
जो है जितना अमीर यहाँ
उतना दिल से कंगाल है ।
-अजय प्रसाद
कौन यहाँ यारों कितना काबिल है
मेरी रुसवाई में अपने ही शामिल हैं
देखा जो हश्र आलिमों का यहाँ
लगा उनसे बेहतर तो हम गाफ़िल हैं ।
-अजय प्रसाद
खून के घूंट जो पीकर रोज़ जी रहे है
खामोशी से ज़ुल्मों सितम सह रहे हैं ।
जिन्होंने कभी गरीबी में जिया ही नहीं
वही आप गरीबों का मसीहा कह रहे हैं
खामोशी से खुश हो कर मैं अपना काम करता हूँ
अदब और कायदे में रह कर ही सलाम करता हूँ ।
चाहे कोई किसी मक़सद से आया हो मिलने मुझे
पूरे खुलूस के साथ मैं उसका एहतराम करता हूँ ।
-अजय प्रसाद
हम करतें हैं इस समाचार का पुरजोर खंडन
हमने ही किया है अपराधियों का महिमामंडन।
न्यूज़ चैनलों के होतें हैं कुछ अपने उसूल यारों
कर देंगें आपका भी गर आप दें कोई विज्ञापन ।
-अजय प्रसाद
पूत के पाँव पालने में ही नज़र आते हैं
ये अलग बात है कभी-कभर आते हैं ।
गुजरे जमाने की बात मैं नहीं कर रहा
मगर आज के दौर में अक़्सर आते हैं ।
उम्मीद औलाद से लगाते हैं माँ बाप
वो उन्हें बृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं ।
-अजय प्रसाद
चैनलों पर रोज़ आकर जो दहाड़ रहें हैं
वही निकले चूहे जब खोदे पहाड़ गएं हैं ।
जाँ गंवाते जवानों की शहादत के नाम पे
पार्टी नेता एक दूसरे के कुर्ते फाड़ रहें हैं ।
-अजय प्रसाद
तो आप भी साहित्य में षडयंत्र के शिकार हो गए
भयंकर बुद्धिजीवी मानसिकता के विकार हो गए ।
तब तो आप किसी की भी सुनेंगे ही नहीं,क्या कहूँ
जब आप खुद ही अपने आप से दरकिनार हो गए ।
-अजय प्रसाद
अहंकार से बढ़ कर कोई विमारी नहीं
लालच से बड़ा कोई भी शिकारी नहीं ।
ज़िंदगी खुशगवार उसीकी हो जती है
जो समझता खुद को आधिकरी नहीं ।
-अजय प्रसाद
किसी की जिम्मेदारी तो तय हो
ज़रा सा तो भगवान का भय हो ।
आखिर कब तक टाले जाएंगे
जनता के लिए कुछ तो समय हो ।
-अजय प्रसाद
सच्चाई तस्वीरों में हो ज़रूरी नहीं
खुदाई फ़कीरों में हो ज़रूरी नहीं ।
जेहन से भी लोग करते है गुलामी
कलाई जंजीरों में हो ज़रूरी नहीं ।
-अजय प्रसाद
कौन यहाँ यारों कितना काबिल है
मेरी रुसवाई में अपने ही शामिल हैं
देखा जो हश्र आलिमों का यहाँ
लगा उनसे बेहतर तो हम जाहिल हैं ।
-अजय प्रसाद
किसी संगदिल की मैं चाह, नहीं करता
फना हो ने की मैं परवाह, नहीं करता ।
तुम्हारी शायरी में कोई दम है,तो ठिक
झूठमूठ मैं कभी वाह! वाह! नहीं करता ।
-अजय प्रसाद
अपराधी कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा
नेताओं के मुँह से ये जुमला नहीं जाएगा ।
चाहे कोई भी हो पार्टी ,किसी की सरकार
हर वारदात के बाद यही दोहराया जाएगा ।
-अजय प्रसाद
जो मर चुका है विचारों से
क्या लेना उसे अखब़ारों से ।
सुनता नहीं जब किसी की
क्या मतलब चित्कारों से
-अजय प्रसाद
शायरी मेरा शौक है पेशा नहीं
आमदनी इसमे एक पैसा नहीं ।
अब न दौर है मीरो-गालिब का
और मैं भी हूँ उनके जैसा नहीं ।
-अजय प्रसाद