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25 Jun 2020 · 1 min read

मुक्तक

अश्रुनाद मुक्तक सड़्ग्रह ….. क्रमशः

अवचेतन में अकुलाती
अनुकृति अनुभूति कराती
युग- युग से चाह मिलन की
बन मरीचिका भटकाती

सुन्दर नव सुखद सवेरा
जग से कर दूर बसेरा
स्वच्छन्द रमण हो जिसमें
कल्पना- लोक चिर मेरा

मम व्यथित हृदय से आती
अन्तर्मन में अकुलाती
जीवन की मृदु अभिलाषा
आँसू बनकर बह जाती

डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ

Language: Hindi
5 Likes · 6 Comments · 583 Views

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