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7 May 2020 · 1 min read

मुक्तक

‘चूड़ियाँ’

आहटें सुन आपकी अब चहकती हैं चूड़ियाँ।
लाल-पीली काँच की मिल खनकती हैं चूड़ियाँ।
लौटकर आए मगर ओढ़े हुए खूनी कफ़न-
टूटकर चीत्कार करती सिसकती हैं चूड़ियाँ।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना

‘जीवन’

जीवन धूप-छाँव का रेला सुख-दुख आते-जाते हैं।
कभी खुशी तो कभी मिले ग़म नित इतिहास रचाते हैं।
कालपाश में फँसी ज़िंदगी तिल-तिल जीवन खोता है-
शोक-अशोक नदी के धारे ईश्वर पार लगाते हैं।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
3 Likes · 238 Views
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