मुक्तक
शमा को कौन आगोश में भर के इठला पाया है
ये वो सय है जो परवाने को भी ख़ाक में मिलती है
ये जो मुहब्बत है दिल कि नायाब दानिशमंदी है
हर सांस में यार के नाम पे मचलती हुई चलती है
~ पुर्दिल सिद्धार्थ
शमा को कौन आगोश में भर के इठला पाया है
ये वो सय है जो परवाने को भी ख़ाक में मिलती है
ये जो मुहब्बत है दिल कि नायाब दानिशमंदी है
हर सांस में यार के नाम पे मचलती हुई चलती है
~ पुर्दिल सिद्धार्थ