मुक्तक
बड़े नाज़ुक दौर के रहगुज़र से गुजर रहे है हम
लिबास बदन पे है और बदन उतार रहे हैं यहां लोग
ये जो घूमते हैं संसद के बाजार में फूले हुए से लोग
रखते हैं आवाम को ठोकरों में आवाम से चूने हुए लोग
~ सिद्धार्थ
बड़े नाज़ुक दौर के रहगुज़र से गुजर रहे है हम
लिबास बदन पे है और बदन उतार रहे हैं यहां लोग
ये जो घूमते हैं संसद के बाजार में फूले हुए से लोग
रखते हैं आवाम को ठोकरों में आवाम से चूने हुए लोग
~ सिद्धार्थ