मुक्तक
1.
मुझ में से मैं ही कभी झांक लेती हूं
कोने कोने में तुझे ताक लेती हूं
तू नहीं कहीं बाहर, मिले है मुझको मेरे अंदर
खुद से उठ कर अंक में तुझे समेट लेती हूं
~ सिद्धार्थ
2.
हवा का रुख बदलना कोन देखे, दिल रक्स करता रहता है
दिलबर की याद में अक्सर कुछ अक्स खींचा करता है
अजी आंखों की क्या कहें हम महफ़िल से उठते उठते भी
दिलबर की झुकी पलकों से आशुं गिरना देखा करता है
~ सिद्धार्थ