मुक्तक
1.
कितनी बातें कह दी उसको होठ सिल वो सुनता रहा
मेरी अंतर के आघातो को चुप चाप वो तो गुनता रहा
~ सिद्धार्थ
,2.
सब के हिस्से दिल मिले ये उसकी रज़ा नहीं रही होगी
मेरे पहलू को दर्द धड़कता हैं ये मेरी ही खता रही होगी
~ सिद्धार्थ
2.
उठा लो मुझ जो पलकों पे की मेरा कोई भी नहीं
अधरें रख दो मेरी पेशानी पे और कह दो मुझ से कोई नहीं
~ सिद्धार्थ
4.
हम तुम्हरे … कोई नहीं
तुम हमरे … कोई नहीं
ये दिल जला … कोई नहीं
अब दिल रोया … कोई नहीं
जरूरत पड़े तो … कोई नहीं
पुकारे दिल किस को … कोई नहीं
आवाजें लौटी टकराकर … कोई नहीं
फूल खिला … कोई नहीं
खार चुभा … कोई नहीं
दर्द हुआ मद्धम मद्धम … कोई नहीं
मैं रोई छुप छुप के … कोई नहीं
आंसू सूखे गालों पे … कोई नहीं
रूमाल गिरा … कोई नहीं
ठेस लगा दिल को … कोई नहीं
कोई नहीं … कोई नहीं
~ सिद्धार्थ