मुक्तक
उठा लो मुझ को पलकों पे जाना की मेरा कोई नहीं
अधरें रख दो मेरी पेशानी पे और कह दो मुझ से कोई नहीं
तुम भी औरों के जैसे हो, ये तुम सब एसे कैसे हो
सब कहते हैं मुझे में सब रंग बेरनगा हैं पर कोई नहीं
मैं शायद पानी की जाई हूं, जाने किस दर्द की परछाई हूं
तुझ से मिलने के पहले ही ढलान पर उतर हूं पर कोई नहीं
~ सिद्धार्थ