मुक्तक
1.
बहुत नाराज़ हो क्या ? जिंदगी से बेजार हो क्या ?
कोई नहीं … किसी के मनाने के इंतजार में हो क्या ?
बहुत चालाक है दुनियां तुम नादान हो क्या ?
कोई नहीं… गम के हाथों उधार में हो क्या ?
~ सिद्धार्थ
2.
मैंने उतारे थे चन्द सपने पलकों के गांव में
आग लगा दी उनको हुक्मरानों के दांव ने
फूल और खुशबुओं से उनकी बैर तो न थी
लहू छिटे गए मगर मेरे ही सपनों के गांव में
अब किरिच किरिच है सपने मेरे पलकों से
उठाऊं कैसे
जख्म ताजा है और दर्द है पलकों के घाव में
~ सिद्धार्थ