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6 Jun 2023 · 1 min read

बेफिक्री की उम्र बचपन

बेफिक्री की उम्र होती है बचपन,
न पढ़ाई लिखाई का तनाव, और,
न ही खान पान की बंदिश,
न स्वास्थ्य की चिन्ता, और,
न ही पूजा-पाठ का नियम।
…………
बचपन में जो खाने को मिल गया,
ईश का प्रसाद ही कहलाया,
जो पहनने को मिल गया,
वह प्रभु का पटवस्त्र ही कहलाया,
जो तोतलाहट में बोल दिया,
वही ब्रह्म वाक्य कहलाया।
…………..
भोलेपन से भरपूर और,
ईर्ष्या द्वेष से कोसों दूर होता है,
बाल- बचपन जीवन,
इस जीवन में सभी प्यार करने वाले होते हैं,
जीवन में प्यार ही प्यार होता है ।
………………

बचपन में गुरु भी दोस्त बनकर आता है,जो,
पढ़ाता कम और प्यार ज्यादा लुटाता है,
नित नए -नए शिष्टाचार सिखलाता है, और,
जीवन को खुशियों से भर देता है।
…………
बचपन में शिक्षक अच्छे बुरे की पहचान कराता है,
जीवन के लक्ष्य को निर्धारित करता है,
जीवन को सफ़लता से जीने के गुर सिखलाता है,
बचपन की दहलीज को युवावस्था तक पहुंचाता है।

घोषणा – उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। यह रचना पहले फेसबुक पेज या व्हाट्स एप ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।

डॉ प्रवीण ठाकुर,
भाषा अधिकारी,
निगमित निकाय भारत सरकार,
शिमला हिमाचल प्रदेश।

Language: Hindi
362 Views
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