विरह/जुदाई
विरह अग्नि में जलता तन मन, भभक उठी चिन्गारी ।
आँखें बंद करूँ या खोलूँ, सूरत दिखे तुम्हारी।
भँवर याद में उलझी रहती,कैसे सहे जुदाई-
प्यार किया है मैंने तुम से, तू है जान हमारी।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली
विरह अग्नि में जलता तन मन, भभक उठी चिन्गारी ।
आँखें बंद करूँ या खोलूँ, सूरत दिखे तुम्हारी।
भँवर याद में उलझी रहती,कैसे सहे जुदाई-
प्यार किया है मैंने तुम से, तू है जान हमारी।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली